निगम स्टाफ कारों के ईंधन की लिमिट बहाल होने में असमंजस! , चंडीगढ़ एम.सी. पार्षदों ने भी मांगी ईंधन की सुविधा
Confusion in restoration of fuel limit of corporation staff cars!
बोले-वह भी लोगों के कार्यों के लिए वार्डों में गाडिय़ां भगाते हैं
अर्थ प्रकाश/वीरेंद्र सिंह
चंडीगढ़। नगर निगम चंडीगढ़ के अधिकारियों के आफिशियल काम के लिए प्रयुक्त होने वाले वाहनों में ईंधन डालने की मनमर्जी नहीं चलेगी। अब उन्हें एक सीमित मात्रा में पेट्रोल/डीजल भरवाने की अनुमति मिलेगी। इससे संबंधित प्रस्ताव विगत २७ मई २०२२ को आयोजित निगम सदन की मासिक बैठक में पारित कर दिया गया।
बता दें कि उक्त प्रस्ताव जब सदन पटल पर रखा गया तो सत्ता एवं विपक्ष की तरफ से इसका विरोध किया गया। भाजपा की तरफ से कहा गया कि नगर निगम केवल अधिकारियों के दौरे पर ईंधन देने की सुविधा प्रदान करता है। किंतु निगम के पार्षद भी अपने एरिया या वार्डों में विकास कार्यों के लिए बार-बार चक्कर काटते रहते हैं, फिर उन्हें भी इस सुविधा के दायरे में क्यों नहीं लाया जात है।
जवाब में निगमायुक्त ने कहा था कि अधिकारी को आफिशियल काम के लिए इधर-उधर सरकारी कार्यालयों और विभिन्न वार्र्डों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। इसलिए उन्हें यह सुविधा दी गई है। उनका कहना था कि यह सुविधा तो शुरूआती समय से ही नगर निगम अपने अधिकारियों को देता है। फिर इसे कैसे बंद किया जा सकता है।
विपक्ष ने भी किया था विरोध
कांग्रेस की गुरबख्श रावत और आम आदमी पार्टी के नेता प्रतिपक्ष योगेश ढींगरा ने भी भाजपा की हां में हां मिलाई थी। उन्होंने कहा कि पार्षद भी जनता के चुने हुए नुमाइंदे होते हैं, वह भी संबंधित वार्डों, निगम कार्यालय, यू.टी. सचिवालय के चक्कर लगाते रहते हैं। इस लिहाज से उनको भी (पार्षदों को) ईंधन का खर्च देना बनता ही है।
कंवरजीत राणा की धमकी
बड़ी देर तक चली इस बहस में जब कोई नतीजा नहीं निकल सका, तो भाजपा के कंवरजीत राणा ने धमकी भरे शब्दों में कहा था कि यदि अधिकारियों को ईंधन का खर्च मिलता है, और उसकी सीमा बढ़ाई जाती है, तो पार्षदों को भी यह सुविधा मिले। यदि ऐसा नहीं हुआ तो वह निगम सदन के अन्य सभी पार्षदों के साथ विरोध की अलख जगाते रहेंगे। उन्होंने यह भी कहा था कि यह प्रस्ताव वह तब तक पास नहीं होने देंगे , जब तक पार्षदों के लिए भी दौरे के ईंधन उपलब्ध नहीं होते।
पूर्व वरिष्ठ महापौर महेश इंदर सिंह ने कहा था कि वह अधिकारियों के ईंधन की मात्रा बढ़ाने का विरोध नहीं करेंगे। किंतु पार्षदों को भी ईंधन का खर्च मिलना चाहिए। उनका कहना था कि चूंकि कोविड-19 के दो वर्षों तक लॉक डाउन के चलते निगम के पास फंड का संकट आन खड़ा हुआ था। इसलिए उनसे लॉकडाउन कार्यकाल के दौरान कम मात्रा में वाहनों के ईंधन डलवाने की अपील की गई थी। इस दौरान अधिकारियों को अपनी लेबों से पैसे खर्च कर वाहनों में ईंधन डलवाने पड़े थे। इसलिए उनकी पुरानी ईंधन सीमा को बहाल कर देना चाहिए।
जवाब में निगमायुक्त की तरफ से कहा गया था कि पार्षदों की बात को वह स्थानीय निकाय सचिव के पास भेज कर उस पर उनकी मंजूरी के लिए आग्रह करेंगी। यदि यह बात मान ली गई तो फिर पार्र्षदों को भी ईंधन के खर्च की सीमा संबंधी फैसला कर लिया जायेगा।
फिलहाल अभी यह मामला विचाराधीन है, किंतु नगर प्रशासन की तरफ से जो भी आदेश आयेंगे उसकी प्रतीक्षा निगम के पार्षदों और अधिकारियों को भी रहेगी।
वाहन चलाने में फिजूलखर्ची न हो
अधिकारियों के ईंधन के बारे में भी निगमायुक्त ने कहा था कि अधिकारी अधिकारित कार्यों के लिए अपने विवेक से काम लेकर वाहनों की जरूरत से ज्यादा आवाजाही पर बे्रक लगायें, तेल की बचत राष्ट्रीय बचत होगी। इस शर्त के साथ ही यह प्रस्ताव पारित हुआ।